बुधवार, 13 अक्तूबर 2010

हां....गर्व से कहिए कि हम एक समाज हैं......!!

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!

कभी जब भी मैं अपने आस-पास के समाज पर नज़र दौडाता हूं....तो ऐसा लगता है कि यह समाज नहीं....बल्कि एक ऐसी दोष-पूर्ण व्यवस्था है,जिसमें लेशमात्र भी सामाजिकता नहीं.....उदाहरण हर एक पल हमारे सामने घटते ही रहते हैं....इस समाज में जीवन-यापन के लिए नितांत आवश्यक चीज़ है आजीविका का साधन होना....और दुर्भाग्यवश यही आजीविका का सिस्टम ही ऐसा बना दिया गया है कि इससे बचने का कोई रास्ता भी नज़र नहीं आता....अब ये सिस्टम क्या है,ज़रा इस पर भी गौर करें...मगर इससे पूर्व यह भी देख लें कि पहले कम-से-कम भारत में क्या हुआ करता था....सदियों पहले व्यापार जब हुआ करता था...उसमें व्यापारी लोग किसान या उत्पादन-कर्ता से माल खरीद कर खुद उसे यत्र-तत्र ले जाकर बेचा करते थे....इस प्रकार लोगों को महज दो हाथों से होकर किसी भी तरह का माल उपलब्ध हो जाया करता था...इसका अर्थ यह भी हुआ कि किसी भी तरह का माल अपने उत्पादक हाथों से [उनके उचित लाभ को जोडकर]व्यापारी से होकर [पुन: उनके उचित लाभ को चुकाकर]छोटे शहरों के दुकानदारों के हाथों [उनका लाभ चुकाकर]उपयोग-कर्ताओं तक पहुंचता था...देख्नने में तो यह बात आज की परिस्थितियों जैसी ही जान पड्ती है....मगर वैसा है नहीं....यहां देखने वाली बात यह है कि...यहां कोई बिचौलिया आदि का अस्तित्व नहीं दिखायी देता और साथ ही माल ढोने वाला ट्रांसपोर्टर खुद् व्यापारी ही हुआ करता था...इस प्रकार कम-से-कम दो जगह लाभ का बंट्वारा होने से बचता था....इसका अर्थ यह भी हुआ कि उपयोग-कर्ता तक कोई भी माल थोडी कम,या यूं कहूं कि वाजिब कीमत में,पहुंचता था,तो भी गलत नहीं होगा...मेरे द्रष्टिकोण से जिस समय इस वर्तमान किस्म का व्यापार का चलन ना हुआ होगा....व्यापारी भी उचित लाभ लेकर ही कीमत का निर्धारण किया करता होगा....कम-से-कम पुराने काल की कीमतों को जब हम आंकते हैं तो साफ़-साफ़ यह पता चलता है.....कि बहुत दूर तो क्या अभी हाल के सात-आठ दशकों पूर्व भी कीमतें बिल्कुल उचित हुआ करती थीं...और यह भी कि उस वक्त कीमत तय करने का सिसट्म बेहद पारदर्शी हुआ करता था....जहां अंतिम खरीदार को भी सभी जगह वितरीत हुए लाभों का पता हुआ करता था !!
आज अब जैसा कि सिस्टम बना जा रहा है....या कि बनाया जा रहा है...या कि बना दिया है...उससे यह साफ़ परिलक्छित होता है कि यह सिस्ट्म सत्ताधिकारियों-उत्पादन-कर्ताओं और बडे व्यापारियों की सांठ-गांठ रूपी व्यभिचार का सिस्टम है...जिसमें सरकार उत्पादनकर्ता या बडे रसूखदार व्यापारी को सब-कुछ करने की असीम छूट देती है...बदले में सरकार को पिछ्ले रास्ते से उसका "हिस्सा" पहुंच जाया करता है...और बेशक यह किसी को भी दीख नहीं पाता....यह सब इतना सुचारू है... नियमित है...प्रबंधित है....कि आम आदमी की तो क्या बिसात....अच्छे-अच्छों को भी इस सिस्टम में छिपे व्यभिचार का जरा भी आभास नहीं है....सिर्फ़ वो ही लोग इसे जान और समझ पाते हैं,जो इस सिस्टम से जा जुड्ते हैं....और इसकी कीमत चुकाते हैं... अरबों-अरबों लोग....क्या कोई जानता है...कि उसके हाथों तक पहुंचने वाली किसी भी वस्तु की उचित कीमत क्या होनी चाहिए..??
क्या किसी को इस बात का आभास भी है....बडी-बडी "बहु"-राष्ट्रीय कंपनियां...जो अपनी मोनोपोली द्वारा अकूत लाभ बटोरे जाती हैं,वो दरअसल हमें पता भी नहीं कि एक रुपये की लागत की वस्तु का मुल्य यानी कि एम.आर.पी. क्या तय कर सकती हैं...क्या आप में से कोई अंदाजा भी लगा सकता है...??नहीं....!!??.....तो फिर जान लीजिये आपके लिये यह कीमत कम-से-कम दस रुपये तो होगी ही....बीस रुपये तक भी हो सकती है....और किसी असामयिक परिस्थिति में [अर्थशास्त्र के अनुसार डिमांड बढ्ने पर वस्तुओं के मूल्य में ब्रद्धि होती है....और यह अर्थ-शास्त्र किन लोगों ने लिखा....??]पचास रुपये तक भी जा सकती है...और अकसर जाया भी करती है....!!
कहने को तो आदमी ने अपनी सुरक्शा के लिए इस समाजरुपी तंत्र का निमार्ण किया है....हम खुद भी समाज के रूप में स्वयं को शायद बेहतर समझते हैं....मगर....समाज अगर सच्ची ही समाज है....तो क्या वह अपने सदस्यों से इस तरह की लूट्पाट कर सकता है...??.....एक रुपये की वस्तु का इतना नाजायज मुल्य ले सकता है....मोनोपोली....बिचौलिए .....सरकारी कमीशन.....ट्रांसपोर्टर.....और आज का सबसे बडा खर्च विज्ञापन....और सबसे बढ्कर इन ये सब मिलकर किसी भी वस्तु का मुल्य...इतना-इतना-इतना ज्यादा बढा देते है....कि आम आदमी को तो यह भी नहीं पता कि उसके द्वारा उसकी अथाह मेहनत से कमाए जा रहे जरा से रुपये से किया जाने वाला एक-एक रुपये का खर्च किस प्रकार कुछ थोडे से लोगों की संपत्ति में इजाफा किये जा रहा है.....!!!

सोमवार, 27 सितंबर 2010

घुटने में बुद्धि किसी की नहीं होती प्यारे !!

ज़माना बेशक आज बहुत आगे बढ़ चूका होओ,मगर स्त्रियों के बारे में पुरुषों के द्वारा कुछ जुमले आज भी बेहद प्रचलित हैं,जिनमें से एक है स्त्रियों की बुद्धि उसके घुटने में होना...क्या तुम्हारी बुद्धि घुटने में है ऐसी बातें आज भी हम आये दिन,बल्कि रोज ही सुनते हैं....और स्त्रियाँ भी इसे सुनती हुई ऐसी "जुमला-प्रूफ"हो गयीं हैं कि उन्हें जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ता इस जुमले से...मगर जैसा कि मैं रो देखता हूँ कि स्त्री की सुन्दरता मात्र देखकर उसकी संगत चाहने वाले,उससे प्रेम करने वाले,छोटी-छोटी बच्चियों से मात्र सुन्दरता के आधार पर ब्याह रचाने वाले पुरुषों...और ख़ास कर सुन्दर स्त्रियों, बच्चियों को दूर-दूर तक भी जाते हुए घूर-घूर कर देखने की सभी उम्र-वर्गों की जन्मजात प्रवृति को देखते हुए यह पड़ता है कि स्रियों की बुद्धि भले घुटने में ही सही मगर कम-से-कम है तो सही....तुममे वो भी है,इसमें संदेह ही होता है कभी-कभी....स्त्रियों को महज सुन्दरता के मापदंड पर मापने वाले पुरुष ने स्त्री को बाबा-आदम जमाने से जैसे सिर्फ उपभोग की वस्तु बना कर धर रखा है और आज के समय में तो विज्ञापनों की वस्तु भी....तो दोस्तों नियम भी यही है कि आप जिस चीज़ को उसके जिस रूप में इस्तेमाल करोगे,वह उसी रूप में ढल जायेगी....समूचा पारिस्थितिक-तंत्र इसी बुनियाद पर टिका हुआ है,कि जिसने जो काम करना है उसकी शारीरिक और मानसिक बुनावट उसी अनुसार ढल जाती है...अगर स्त्री भी उसी अनुसार ढली हुई है तो इसमें कौन सी अजूबा बात हो गयी !!
दोस्तों हमने विशेषतया भारत में स्त्रियों को जो स्थान दिया हुआ है उसमें उसके सौन्दर्य के उपयोग के अलावा खुद के इस्तेमाल की कोई और गुंजाईश ही नहीं बनती...वो तो गनीमत है विगत कालों में कुछ महापुरुषों ने अपनी मानवीयता भरी दृष्टि के कारण स्त्रियों पर रहम किया और उनके बहुत सारे बंधक अधिकार उन्हें लौटाए....और कुछ हद तक उनकी खोयी हुई गरिमा उन्हें प्रदान भी की वरना मुग़ल काल और उसके आस-पास के समय से हमने स्त्रियों को दो ही तरह से पोषित किया....या तो शोषित बीवी....या फिर "रंडी"(माफ़ कीजिये मैं यह शब्द नहीं बदलना चाहूँगा.... क्योंकि हमारे बहुत बड़े सौभाग्य से स्त्रियों के लिए यह शब्द आज भी देश के बहुत बड़े हिस्से में स्त्रियों के लिए जैसे बड़े सम्मान से लिया जाता है,ठीक उसी तरह जिस तरह दिल्ली और उसके आस-पास "भैन...चो....और भैन के.....!!)जब शब्दों का उपयोग आप जिस सम्मान के साथ अपने समाज में बड़े ही धड़ल्ले से किया करते हो....तो उन्हीं शब्दों को आपको लतियाने वाले आलेखों में देखकर ऐतराज मत करो....बल्कि शर्म करो शर्म....ताकि उस शर्म से तुम किसी को उसका वाजब सम्मान लौटा सको....!!
तो दोस्तों स्त्रियों के लिए हमने जिस तरह की दुनिया का निर्माण किया....सिर्फ अपनी जरूरतों और अपनी वासनापूर्ति के लिए....तो एक आर्थिक रूप से गुलाम वस्तु के क्या हो पाना संभव होता....??और जब वो सौन्दर्य की मानक बनी हुई है तो हम कहते हैं कि उसकी बुद्धि घुटने में....ये क्या बात हुई भला....!!....आपको अगर उसकी बुद्धि पर कोई शक तो उसे जो काम आप खुद कर रहे हो वो सौंप कर देख लो....!!और उसकी भी क्या जरुरत है....आप ज़रा आँखे ही खोल लो ना...आपको खुद ही दिखाई दे जाएगा....को वो कहीं भी आपसे कम उत्तम प्रदर्शन नहीं कर रही,बल्कि कहीं -कहीं तो आपसे भी ज्यादा....कहने का अर्थ सिर्फ इतना ही है कि इस युग में किसी को छोटा मत समझो...ना स्त्री को ना बच्चों को...वो दिन हवा हुए जब स्त्री आपकी बपौती हुआ करती थी...अब वो एक खुला आसमान है...और उसकी अपनी एक परवाज है...और किसी मुगालते में मत रहना तुम....स्त्री की यह उड़ान अनंत भी हो सकती है....यहाँ तक कि तुम्हारी कल्पना के बाहर भी....इसीलिए तुम तो अपना काम करो जी...और स्त्री को अपना काम करने दो.....उसकी पूरी आज़ादी के साथ......ठीक है ना.....??आगे इस बात का ध्यान रखना....!!!

रविवार, 26 सितंबर 2010

ज़रा सोचिये....और बदलिए !!

ज़रा सोचिये....और बदलिए !!
दोस्तों समाज को बदलने वगैरह की बहुत बाते की जाती हैं बेईमानों और भ्रष्टाचारियों आदि को सज़ा वगैरह देने की बाते भी खूब की जाती हैं,मगर ज़रा देखिये कि इन्हीं बेईमानों और भ्रष्टाचारियों को सज़ा सुनाने वाले जज महोदय,जो निजी तौर पर भी इन लोगों की समस्त कारस्तानियों को जानते हुए भी किसी समारोह आदि में खुद को विशिष्ठ अथिति बनाए जाने पर जब उस समारोह की अगली कतार में बैठते हैं तब उपरोक्त बेईमान लोग भी वही उसी कतार में अगली पंक्ति पर ही विराजे होते हैं,तब क्या ये जज लोग ऐसे धूर्त लोगों से कन्नी काट लेते हैं ??नहीं बल्कि ये लोग भी अन्य लोगों की ही तरह इन लोगों से हाथ मिलाते हैं,बोलते हैं,बतियाते हैं.....अगर किसी भी नाते,चाहे सभ्यता और संस्कार के नाते ही क्यों नहीं,किसी भी रूप में इन बेईमानों और भ्रष्टाचारियों का समाज में इस रूप में सम्मान है...तब आप ही बताईये दोस्तों कि क्या कभी भी कुछ बदल सकता है.....??दोस्तों...ज़रा सोचिये और बदलिए....खुद को भी और समाज को भी.....एक बात बताऊँ आपको....आप ही समाज की प्रथम इकाई हैं !!

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शनिवार, 14 अगस्त 2010

लेकिन राहुल,तुम करोगे आखिर क्या....???

लेकिन राहुल,तुम करोगे आखिर क्या....??

प्रिय राहुल, अभी-अभी अखबार में यह खबर पढी कि तुम प्रधानमंत्री बनने के लिए देश के लोगों की सर्वोच्च पसंद हो,कोई उनतीस फ़ीसदी लोगों की पसंद और यह भी कि तुमने इस पद के अन्य दावेदारों यथा सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह को पीछे छोड दिया है....किसी और दल के किसी व्यक्ति का तो अब इस पद को पाने का कोई उपाय ही नहीं,क्योंकि तुम्हारी वर्तमान लोकप्रियता के सम्मुख कोई कहीं नहीं ठहरता,तो यह प्रश्न स्वयं ही पैदा हो जाता है कि आखिर प्रधानमंत्री बनकर आखिर तुम करोगे तो करोगे क्या,तुम्हारी सोच क्या है,तुम्हारी देशना क्या है,तुममें देश के प्रति जज्बा क्या है और इसकी समस्याओं की जानकारी कितनी है,आखिर इन्हीं सवालों के उत्तर में तुम्हारे खुद के प्रधानमंत्री होने के औचित्य से अधिक देश को उसकी प्राथमिकताओं के आधार पर उसकी समस्याओं को हल में निहित है इस पद का औचित्य...!!पुन:,यह भी तय है कि इस देश की भोली-अनपढ और भावुक जनता आने वाले दिनों में तुम्हें इस "राजगद्दी" का वास्तविक हकदार समझते हुए इसे तुम्हें(प्रकारांतर से तुम्हारी मम्मी को)सौंप भी दे,जैसा कि वह विगत में करती भी आयी है तो तुम वही करने वाले हो जैसा कि विगत की सारी सरकारें करती हुई आयी हैं अथवा सचमुच तुम्हारे दिल में इस देश का कोई अदभुत भविष्य हिलोरे ले रहा है,जिसे कि साकार करने हेतु राजनीति के इस मैदान में,इस घमासान में कूद पडे हो...??यह हम नहीं जानते और सच तो यह है कि किसी के बारे में कुच नहीं जानते....और किसी को भी महज उसके भाषणों के आधार पर वोट दे डालते हैं,बिना उसकी कोई पड्ताल किये...और देश को स्वाधीनता दिलाने वाली इस कांग्रेस को तो हम खुद ही देश की बपौती मानते हैं,बिना यह जाने कि इसी कांग्रेस ने आज़ादी के बाद देश के कुछ किया भी है या इसकी जडों में सिर्फ़ मठ्ठा ही डाला है, मगर उसके बावजूद भी ओ राहुल मैं जानता हूं कि देश के अगले प्रधानमंत्री तुम्ही हो,क्योंकि मैं इस देश की जनता को जानता हूं तथा साथ ही साथ तुम्हारी कांग्रेस की सारी नौटंकियों को भी जानता और परखता हुं !!
अब देखो ना,मेरे(मतलब देश की समुची सोयी हुई जनता के) प्रश्न के उत्तर में यह भी तय है कि तुम बजाय उत्तर देने के उल्टे हमीं से प्रश्न करने लगो कि किसी युवराज या राजकुमार से ऐसे भद्दे सवाल पूछ्ने वाले हम होते कौन हैं,या फिर यह भी कि ऐसे सवाल हमने विगत में किसी से क्युं नहीं पूछे,किसी भी नेता से उसकी देशभक्ति का प्रमाण क्यूं नहीं मांगा.....कभी-कभी गलत समय पर सवाल पूछे जाने पर सवाल अनपेक्षित रूप से भडकाऊ हो जाता है,है ना राहुल...??मगर प्यारे राहुल,सवाल तो किसी भी वक्त उठाया जा सकता है,है कि नहीं...!!और उठाये गये सवाल के जवाब किसी जनप्रतिनिधि से ही क्यूं,किसी संभावित जनप्रतिनिधि से भी उतने ही अपेक्षित होते हैं,होते हैं ना राहुल..??अलबत्ता तो राहुल इस देश में सवाल ही बहुत कम पूछे गये हैं किसी से मगर उससे भी बडा दुर्भाग्य तो यह कि किसी के द्वारा किसी भी सवाल का कोई यथोचित जवाब ना दिये जाने के कारण यह देश,जिसे श्रद्दा से कभी हमने अपना वतन कह डाला है(उफ़ कह डाला था कहना था..!!),प्रश्नों के ऐसे अनसुलझे चौराहों से जा फंसा है,जिसे संभवत: कोई युवा ही सुलझा सकता है,सूझ-शक्ति-दूरदर्शिता-आत्मबल-स्वाभिमान-गौरव-जमीनी सच्चाईयों की समझ रखने वाला एक समष्टिकेंद्रित युवा ही सुलझा सकता है,और सच तो यह है कि अरबों की जनसंख्या वाले इस देश में वह युवा कोई भी हो सकता है,यहां तक कि तुम स्वयम भी....!!
तो राहुल,इस देश की समस्याएं क्या हैं,यह बार-बार तुम्हे बतलाकर तुम्हारा और मेरा वक्त जाया नहीं करना चाहता...मगर हां,तुम्हे यह बताना चाहता हूं कि उससे बडी समस्या,दरअसल सबसे बडी समस्या ही वह राजनीति है जिससे तुम्हारी ही भाषा में कहूं तो तुम "बिलोंग" करते हो, जिसमें कि तुम रचे-पगे हो,जो कि तुम्हारे आस-पास है और जिसका कि इस देश में सर्वत्र राज है,जो चौकडी तुम्हारे एन बगल में हैं और सबसे बडी और दुखदायी तो यह कि जिस "धन-बल" से यहां कि राजनीति चलती है,चल रही है...और शायद तुम्हारे होने के बावजुद भी चलेगी और जिसे कि तुम खुद भी इसी तरह हांकोगे...जो कि सुगम है,जो कि सरल है,या जो कि मलाईदार है....??क्या तुम अपने आसपास उन्ही लोगों को रखनेवाले हो,जिन्होने इस देश का खून चूस-चूस कर इतना धन और ताकत इकठ्ठा कर ली है कि कोई उनका कुछ नहीं बिगाड सके यहां तक कि कानून भी नहीं....भले अपवादस्वरूप कुछ भी होता दिखायी दे जाये...जो अब भी यही कर रहे हैं..जो आगे भी यही करेंगे.....क्योंकि इसके अलावा वे कुछ भी नहीं जानते... क्योंकि इसके अलावा उन्होने कुछ सीखा ही नहीं...क्योंकि महज अपने बीवी-बच्चों और परिवार-भर का पेट भरने के लिए उन्हें कुछ और सीखने की आवश्यकता भी नहीं थी...क्योंकि हरामखोरी दरअसल ज्यादा आसान होती है और वह हरामखोरी तो और भी ज्यादा,जिसके लिए किसी को कोई जवाब तक ना देना पड्ता हो और यहां तक कि गलती से कोई सिरफ़िरा जवाब मांग बैठे तो उसे उपर से छ: इंच छोटा कर डालने की "सलाह" तक दी जाती हो...दरअसल सत्ता और उसके साधनों की बन्दरबांट में जुटे हुए इन बन्दरों को नचाने में काबिल,इन अति महत्वपूर्ण मगर देश की नज़र में मलेच्छ लोगों को नचाने में तुम्हारी काबिलियत मुझे सन्देह है राहूल.....!!
तुम्हारे बाबुजी ने,ओ राहुल,एक बार सार्वजनिक रूप से यह कहा था कि केन्द्र से चला एक रुपया आम आदमी तक पहुंचते-पहुंचते पन्द्रह पैसे बन जाता है....वैसे इस कथन में मुझे पन्द्रह पैसे वाले हिस्से पर भी एतराज है....मेरा सन्देह है कि दरअसल पांच पैसा ही सही जगह तक पहुंच पाता है और राहूल इस धत्तकरम के जिम्मेवार कौन लोग हैं...किस चौकडी का किया-धरा है यह सब....कहा ना,मैं बार-बार तुम्हे बता कर तुम्हारा और मेरा वक्त जाया नहीं करना चाहता....बस तुमसे इतना पूछ्ने में ही मेरा जोर है कि इस हकीकत का-इस सच्चाई का-इन तथ्यों के मद्देनज़र तुम्हारे मन में कोई उपयुक्त विचार भी है अथवा नहीं....कि बस यों ही खाली-पीली......!!राहुल सच्चाई तो यह है की आज की तारीख में अगर ऐसे लोगों के खिलाफ अगर कार्रवाई की जाए तो दल के दल खाली हो जायेंगे...कोई साफ़-सुथरा आदमी दिखाई ही नहीं देगा....ऐसे में बताओ ना राहुल कि इस राजनीति में और इस राजनीति का तुम करोगे तो करोगे आखिर क्या....??किस तरह इस गंद भरे कचड़े को साफ़ करोगे...किन लोगों को तरजीह दोगे....और किन्हें वनवास...या सब कुछ इसी तरह चलता रहना है...ज्यादा उम्मीद तो इसी बात की लगती है..जिन शेरोन के मुहं में खून लग चुका हो वो भला घास खायेंगे....और यदि ऐसा ही है तो तुम्हारे राजनीति में पदार्पण को लेकर इतना शोर-शराबा किस बात का....तुम्हारे पी.एम्.बनने-ना-बनने को लेकर इतना हंगमा क्यूँ....!!इस हंगामे को रोको यार....थोड़ा भी देश के मान का तुम्हें भान है...तो इसकी जड़ों से जुडो....इन्हें सींचो...तब तुम खुद को मुंह दिखाने के योग्य रह सकोगे....और देश का थोडा-बहुत भी अगर भला हो पाया,तो इस देश की आगामी संताने तुम्हें याद करेगी..इस देश के वतमान बुजुर्ग तुम्हें तहे-दिल से शत-शत आशीर्वाद देंगे...और हम भी तुम्हे सैल्यूट करेंगे....सच राहुल भाई....!!