शनिवार, 9 अगस्त 2008

मैं भूत बोल रहा हूँ

पता नहीं कब और किसका लिखा यह पहाडा बचपन में ही पढ़ा था ,ऐसा दिल में घुसा कि आज तक याद है,आपको बता रहा हूँ गौर करें....नेता एकम नेता !नेता दुनी दगाबाज !नेता तिया तिकडमबाज !नेता चौके चार सौ बीस ! नेता पंजे पुलिस दलाल !नेता छक्के छक्का-हिन्जडा !नेता सत्ते सत्ता-धारी ! नेता अट्ठे aringaabaaj ! नेता नम्मे नमक-हराम ! नेता दस्से सत्यानाश !!इस अनाम कवि को मैं बचपन से ही सलाम करता आया हूँ !!दस छोटी-छोटी पंक्तियों में देश की एक महत्वपूर्ण कौम का समूचा चरित्र बखान कर दिया है ,मगर ये एक कौम तो क्या, शायद कोई भी आदमी कितना भी लांछित क्यों न जाए ,किसी भी कीमत पर देश का सच्चा नागरिक बनने को तैयार नहीं है ,हाँ ;एक-दूसरे को कोसते तो सभी हैं ........ट्रैफिक जाम,तू जिम्मेवार.....रोड पर कूडा ,तू जिम्मेवार ....कहीं कुच्छ भी ग़लत हो जाए ,तो मुझे छोड़कर सारे ग़लत !! फरमाया है .....जहाँ पर मैं रहता था वो वतन कुच्छ ऐसा था .....हर ओर गंदगी और कूre का आलम था ......मैं जहाँ गया वां पान की पीकों की रूताब थी वाह -वाह .....हर दीवार पर थूक की नदियाँ थी वाह-वाह अन्दर गंदे कागजों का ढेर था वाह-वाह ....पेश आते थे सभी बदतमीजी से वाह-वाह ...किसी की कहीं भी उतार देते थे इज्ज़त वाह-वाह ....कोई कहीं भी टट्टी-पेशाब कर सकता था वाह-वाह ...सड़कों पर बहती थी नालियां वाह-वाह ..कितना महान था वह लोकतंत्र वाह-वाह ...कोई वतन की इज्ज़त उतार सकता था वाह-वाह ...तिरंगा पैरों-tale रौंदा jata tha वाह-वाह..नंगी तस्वीरों से पटी पड़ी थीं गलियां वाह-वाह ..सब अपना घर भरने में थे मशगूल... बाप बना देश रोता जाता था वाह-वाह... बहन वेश्याओं की बस्ती में रोतee थी.....और भारत-maa को तो पहले ही बेच दिया था वाह-वाह...वां इसी धर्मनिरपेक्षता थी वाह-वाह ...सब एक दूसरे की ....खींचते थे वाह-वाह...गरीबों के दुखों से किसी का कोई वास्ता न था ...वां सब सरकार गिरते थे वाह-वाह ...बड़ा ही प्यारा ,सबसे न्यारा वतन था वाह-वाह ... बस सब एक दूसरे की "....."मार "रहे थे वाह-वाह .....!!अब badhaane को तो कुछ भी बढाया जा सकता है ,मगर क्या फायदा?इन बातों से लोग बोर ही होते हैं !!सो फिलहाल इतना ही .....अब चलता हूँ ....!!haay ...आगे पढ़ें!
प्रस्तुतकर्ता bhoothnath पर 9:35 PM 1 टिप्पणियाँ

मैं भूत बोल रहा हूँ !!
हा-हा-हा-हा .....!!!! बंद! बंद! बंद! बंद!! हाँ-हाँ बिल्कुल यही सब तो देखता हुआ मै आपकी इसी रांची से परलोक की और कूच कर गया था !!बिल्कुल आपलोगों की तरह खामोश और भयभीत!!कुछ लोग अपने घरों में दुबक गए हैं,क्योंकि कुछ लोग सड़कों पर भड़क गए हैं !!कुछ लोग कि जिनके चहरे हैं या लाठी ,डंडे और हथियार हैं,कुछ लोग कि जिनके ऊपर पागलपन सवार है ,कुछ लोग जो अपने गुस्से की नाव पर सवार हैं......और कुछ लोग जो अपने-अपने घरों में बेबस और बेदार हैं!!ये लोग कौन हैं...वे लोग कौन हैं !!कोई गाड़ी किसी को चीप दे तो बंद!कोई किसी को मार दे तो बंद!कोई सड़क पर मर जाए तो बंद!कोई किसी की बात न माने तो बंद!कभी इसके समर्थन में बंद!कभी उसके विरोध में बंद!कभी मन्दिर का बंद!कभी मस्जिद का बंद!कभी इस दल का बंद!कभी उस दल का बंद!आज आदिवासी बंद!कल गैर-आदिवासी बंद!असल में अब तो झारखण्ड में बंद की खुशियाँ मनाई जानी चाहिए,बाकायदा मिठाइयाँ बांटी जानी चाहिए!नाच-गाने नगाडे की थाप पर बजाते झूमते लोगों की टोलियाँ जगह-जगह मस्ती करती नज़र आए तो समझिए यही अपने सपनो का सुंदर-सा,प्यारा-सा झारखण्ड है!!आज रांची बंद,हांजी!कल टाटा बंद,हांजी!परसों गुमला बंद,हांजी!फिर दुमका बंद,हांजी!..........सुनो ...सुनो...सुनो.....सरकार का ये फरमान है कि अब उसका बस किसी पर नहीं चलता है इसलिये जो शहर जिसके बाप का है वो उसे बंद करा ले !!खुला होना वैसे भी प्रशासन का सिरदर्द है,कौन जाने, कब कहाँ ,कैसा बम फट जाए!!लोग घरों में ही बंद रहें यही अच्छा है!!ना रहे बांस ...ना बजे बांसूरी !! मैं भी सौऊँ ,तू भी सो ...फ़िर सब कुछ अच्छा हो!!सब कोई अपने -अपने घर में सोएं,तो देश में बढ़ता बच्चा हो.... ज्यादा बच्चा माने ज्यादा मानवीय-श्रम की ताकत,ज्यादा श्रम माने देश का ज्यादा विकाश !!यही तो चाहते हैं सब आज!!इसलिये झारखण्ड के नक्शे-कदम पर चलो,हर तरफ बंद-बंद-बंद करते चलो !!! ठप्प हो जाए बिसनेस और व्यापार!!हों जाएँ यहाँ के लोग बेरोजगार!!और बंद से ही हो जाए सबको प्यार!!इस बंद के लोगो का बन जाए देश का इक झंडा,और जो बांको न माने,उसको पड़े इक तेल पिलाया डंडा !!जो परीक्षा में पास हो ,उसे मिले अंडा!!और जो हो फेल ,वो फहराए योग्यता का झंडा!!!हा-हा-हा-हा!!!सब कोई करो रे मिल के बंद ,क्योंकि यही तो है तकनीक के इस युग में विकास झारखंडी फंदा!!झूमो रे..नाचो रे आज...गाओ खुशी के गीत रे..गाओ खुशी के गीत रे .....आज बंद था, कल बंद होगा ...... पिछडेपन का सेहरा हमारे सर पर होगा!!!! मैं भूत बोल रहा हूँ ...मगर परलोक में भी झारखण्ड के आम लोगों... नेताओं... अफसरों... मंत्रियों .... ठेकेदारों के कारनामों से व्यथित होकर पागलों की तरह यहाँ से वहां ढोल रहा हूँ...रब्बा खैर करे यहाँ के लोगों की....लोगों कुछ करो वरना ये लोग तुम्हारे साथ-साथ इस नवोदित राज्य को भी खा जायेंगे...तुम्हारे निशान भी यहाँ रह नही पाएंगे!!!!! ...आगे पढ़ें!
प्रस्तुतकर्ता bhoothnath पर 7:22 PM 0 टिप्पणियाँ

कोई टिप्पणी नहीं: