रविवार, 26 सितंबर 2010

ज़रा सोचिये....और बदलिए !!

ज़रा सोचिये....और बदलिए !!
दोस्तों समाज को बदलने वगैरह की बहुत बाते की जाती हैं बेईमानों और भ्रष्टाचारियों आदि को सज़ा वगैरह देने की बाते भी खूब की जाती हैं,मगर ज़रा देखिये कि इन्हीं बेईमानों और भ्रष्टाचारियों को सज़ा सुनाने वाले जज महोदय,जो निजी तौर पर भी इन लोगों की समस्त कारस्तानियों को जानते हुए भी किसी समारोह आदि में खुद को विशिष्ठ अथिति बनाए जाने पर जब उस समारोह की अगली कतार में बैठते हैं तब उपरोक्त बेईमान लोग भी वही उसी कतार में अगली पंक्ति पर ही विराजे होते हैं,तब क्या ये जज लोग ऐसे धूर्त लोगों से कन्नी काट लेते हैं ??नहीं बल्कि ये लोग भी अन्य लोगों की ही तरह इन लोगों से हाथ मिलाते हैं,बोलते हैं,बतियाते हैं.....अगर किसी भी नाते,चाहे सभ्यता और संस्कार के नाते ही क्यों नहीं,किसी भी रूप में इन बेईमानों और भ्रष्टाचारियों का समाज में इस रूप में सम्मान है...तब आप ही बताईये दोस्तों कि क्या कभी भी कुछ बदल सकता है.....??दोस्तों...ज़रा सोचिये और बदलिए....खुद को भी और समाज को भी.....एक बात बताऊँ आपको....आप ही समाज की प्रथम इकाई हैं !!

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2 टिप्‍पणियां:

अजय कुमार ने कहा…

हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

संगीता पुरी ने कहा…

इस सुंदर से चिट्ठे के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!